मुक्तक काव्य निखार 17.9.16 से

मुक्तक 16,,,,,14

कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।

'ललित'

अब तो अपने जीवन की तू,अंतिम साँसें गिन प्यारे।
भारत का बच्चा बच्चा भी,हर पल तुझको ललकारे।
सरल शांत भारत को तूने,गम का क्यों सैलाब दिया?
अब तेरी कुछ खैर नहीं है,ओ रे बुजदिल हत्यारे।
'ललित'

मुक्तक 16,,,,,14

जनता को जो मान रहे हैं,भीड़ मकोड़े- कीड़ों की।
लड़ते दिखते रोज लड़ाई,अपने सुंदर नीड़ों की।
कितने शातिर नेता हैं ये,कितनी बेबस जनता है।
भेड़चाल का लाभ उठाते,ये जनता की भीड़ों की।

'ललित'

मुक्तक

अब तो तेरी बर्बरता ने,सारी सीमायें तोड़ी।
देख जरा अब आईना तू,शर्म जरा करले थोड़ी।
लेंगें हम चुन -चुन कर बदला,तेरी सब करतूतों का।
ओ नापाक पाक अब तेरी,बनने वाली है घोड़ी।

'ललित'

मुक्तक  16....14

क्या कहता है दीप सुनो तुम,दीवाली के मस्तानों।
खुद जलकर जग रोशन कर दो,ज्योति जगत के परवानों।
याद करेगी तुमको दुनिया,हर होली दीवाली पर।
दुश्मन को तुम धूल चटा दो,हिन्द फौज के दीवानों।

ललित

मुक्तक  16....14

आज दिवाली  के अवसर पर,याद गुरू को कर लो जी।
प्रेम प्यार से वन्दन करलो,शीश चरण में धर लो जी।
लौह धातु से स्वर्ण बनाने,वाले पारस को पूजो।
कृपा गुरू की बनी रहे ये,माँ लक्ष्मी से वर लो जी।

ललित

मुक्तक  16...14

दीवाली की रौनक है या,चाँद सितारों का मेला।
धरती पर उतरा है जैसे,दीप-बातियों का रेला।
हर आँगन में खनक रही हैं,खन-खन-खन खन-खन खुशियाँ।
लक्ष्मी जी के स्वागत की है,आयी मधुर-मधुर बेला।

'ललित'

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